वो डरावना कुआं 
- एक सच्ची कहानी

(कबीर रावत की आवाज में... धीमी और गहरी... हर शब्द में एक रहस्यभरी गूँज...)

गहरी रात... आसमान में बादल उमड़ रहे थे... पेड़ों की शाखाएँ अजीब तरीके से हिल रही थीं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें हिलाकर डराने की कोशिश कर रही हो। चारों ओर सन्नाटा था, मगर इस सन्नाटे में भी एक अजीब-सी सरसराहट सुनाई दे रही थी। और ठीक वहीं, गाँव माधवपुर की सीमा के बाहर, वह खतरनाक कुआं खड़ा था—जहाँ जाने की हिम्मत कोई नहीं करता था।

लोग कहते थे कि उस कुएँ से रात में अजीब आवाजें आती थीं, जैसे कोई औरत अंदर से चीख रही हो, किसी को पुकार रही हो। और जिसने भी उसकी पुकार सुनी, वह फिर कभी नहीं लौटा...


एक गलती... जो जिंदगी पर भारी पड़ी

रवि, सुनील और विजय—तीनों दोस्त थे। वे इस तरह की कहानियों को महज अफवाह मानते थे। लेकिन उस रात, जब गाँव के बुजुर्गों ने फिर से कुएँ की कहानियाँ सुनानी शुरू कीं, तो रवि हँसते हुए बोला, “अरे बाबा, ये सब पुराने ज़माने की बातें हैं। आज के जमाने में भूत-वूत कुछ नहीं होता!”

बुजुर्गों ने एक-दूसरे को देखा और सिर्फ इतना कहा, “अगर यकीन नहीं है, तो जाओ और खुद देख लो... लेकिन याद रखना, अगर वहाँ कोई पुकारे, तो कभी जवाब मत देना!”

रवि ने चुनौती स्वीकार कर ली। आधी रात को, जब पूरा गाँव सो रहा था, तीनों दोस्त टॉर्च और रस्सी लेकर कुएँ की ओर बढ़े।

जैसे-जैसे वे कुएँ के करीब पहुँचते गए, हवा भारी होती गई। अजीब-सी ठंड महसूस हो रही थी, जैसे किसी ने चारों ओर बर्फ फैला दी हो। टॉर्च की रोशनी भी कम होती जा रही थी।

और फिर...

एक मद्धम, मगर करुण पुकार सुनाई दी...

“कोई है...? मेरी मदद करो... मैं यहाँ फँस गई हूँ...”

सुनील और विजय के रोंगटे खड़े हो गए। मगर रवि मुस्कुराया। “देखा? कोई आवाज़ लगा रहा है। इसका मतलब ये सब झूठ है। कोई अंदर गिर गया होगा।”

विजय घबरा गया, “बाबा ने कहा था कि जवाब मत देना!”

लेकिन रवि ने उनकी चेतावनी को अनसुना कर दिया। वह कुएँ के पास गया और नीचे झाँकने लगा।

और तभी...


कुएँ से उभरा एक चेहरा...

जैसे ही रवि ने नीचे झाँका, उसे पानी के अंदर एक चेहरा नजर आया। एक स्त्री का चेहरा... सफेद, मगर भयानक। उसकी आँखें काली, गहरी और खाली थीं। उसके होंठ हिले...

“तुम मेरी मदद करोगे... न?”

रवि चीख भी नहीं पाया।

अचानक, उस चेहरे ने अपनी आँखें खोलीं और उसकी आँखों से लाल खून जैसा पानी टपकने लगा।

रवि ने पीछे हटने की कोशिश की, मगर बहुत देर हो चुकी थी। कुएँ से दो हड्डियों जैसे सफेद हाथ निकले और उन्होंने रवि का गला पकड़ लिया।

रवि की आँखें फटी की फटी रह गईं।

विजय और सुनील ने उसे खींचने की कोशिश की, मगर वह हाथ बहुत ताकतवर था। रवि की चीखें जंगल में गूँज उठीं।


गाँव का सबसे बड़ा रहस्य

रातभर चले शोर के बाद, अगली सुबह गाँव वालों ने कुएँ के पास जाकर देखा। वहाँ कोई नहीं था। न रवि, न सुनील, न विजय। सिर्फ एक चीज थी—रवि का जला हुआ मोबाइल, जिसकी स्क्रीन पर एक तस्वीर थी।

उस तस्वीर में एक महिला खड़ी थी, जिसका आधा चेहरा जला हुआ था और उसकी आँखों से खून बह रहा था।

बुजुर्गों ने तस्वीर देखते ही एक लंबी साँस ली। “ये वही है...”

बचपन में ही गाँव की एक लड़की को इसी कुएँ में जिंदा फेंक दिया गया था। उसकी आत्मा आज भी वहाँ कैद थी।


एक आखिरी चीख...

कहते हैं कि आज भी, अगर कोई उस कुएँ के पास जाता है, तो एक धीमी फुसफुसाहट सुनाई देती है—“मेरी मदद करो...”

और जो उस पुकार का जवाब दे देता है...

वो फिर कभी लौटकर नहीं आता।


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